रिपोर्ट एक्सक्लूसिव,बीकानेर(जयनारायण बिस्सा)। दिल्ली की तर्ज पर प्रदेश में दस संसदीय सचिव को लाभ के पद पर मानते हुए पद से हटाने को लेकर राजस्थान उच्च न्यायालय में एक परिवाद दायर हुआ है। जिस पर सर्वोच्च न्यायालय वरिष्ठ अधिवक्ताओं सहित कानून वेताओं से रायशुमारी कर रहा है। हाईकोर्ट में विचाराधीन इस याचिका के बाद सियासी गलियारों में हलचल तेज हो गई है। एक ओर जहां मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चा जोरों पर है। वहीं दूसरी ओर इस प्रकार के समाचारों ने सरकार विरोधियों को बल प्रदान कर दिया है। जानकारी के अनुसार कि इस मामले को लटकाए रखने की सरकार की रणनीति के चलते अब तक न्यायालय की ओर से दिए गए नोटिस का जवाब भी नहीं दिया गया है।
बीते मंगलवार को इस याचिका की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने दो अप्रेल को जवाब पेश करने के निर्देश दिए। याचिकाकर्ता दीपेश ओसवाल ने कहा कि सरकार इस मामले को चुनाव तक लटकाए रखना चाहती है। जवाब के लिए सरकार तीन बार समय मांग चुकी है, इसके बावजूद जवाब पेश नहीं किया गया है।
इन पर गिर सकती है गाज
दीपेश ओसवाल की ओर से न्यायालय में दर्ज याचिका के आधार पर खाजूवाला विधायक डॉ. विश्वनाथ मेघवाल सहित वर्तमान में सुरेश रावत, जितेन्द्र गोठवाल, लादूराम बिश्नोई, ओमप्रकाश हूडला, कैलाश वर्मा, नरेन्द्र नागर, भीमा भाई, भैराराम और शत्रुघन गौतम संसदीय सचिव है। इनको हटाने को लेकर लटकी तलवार के चलते राज्य सरकार की मुश्किलें इन दिनों खासी बढ़ गई है।
इस याचिका पर हो सकती है नियुक्ति रद्द
दीपेश ओसवाल की ओर से न्यायालय में दर्ज याचिका में कहा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय ने जुलाई 2017 बिमोलांगशु रॉय बनाम आसाम राज्य के मामले में दिए गए निर्णय में कहा कि राज्य सरकारों को संसदीय सचिव बनाने का अधिकार नहीं है, इसलिए संसदीय सचिवों की नियुक्ति रद्द कराए और सभी 10 संसदीय सचिवों को पद से हटाया जाए। इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस का कहना है कि चुनाव आयोग दिल्ली की तरह राजस्थान के संसदीय सचिवों की भी विधानसभा से सदस्यता समाप्त करें।
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