श्रृद्वालू भक्तिभाव से श्रवण कर रहे हैं श्रीवृंदावन प्रेमरस धारा कथा
रिपोर्ट एक्सक्लूसिव,श्रीगंगानगर। भगवान को पाने के लिए निष्काम भक्ति जरूरी है। आज लोग प्रभु को अपना काम होने तक याद करते हैं। काम पूरा होते ही भूल जाते हैं। भक्ति बिना स्वार्थ की होनी चाहिए। यह बात वृंदावन से आये श्रीहित मोहन महाराज ने रायसिंहनगर स्थित केवी पैलेस में चल रही श्रीवृंदावन प्रेमरस धारा कथा में कहीं। उन्होंने कृष्ण सुदामा मिलन प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि मित्रता हो तो सुदामा और कन्हैया के जैसी। क्योंकि आज भी संसार दोनों की निष्वार्थ मित्रता को मानता हैं।
इसलिये भगवान को हमेशा याद करते रहना चाहिये। वहीं कथा के दौरान श्रीहित मोहन महाराज ने कहा कि कलियुग में तो श्री हरिनाम संकीर्तन ही श्रेष्ठ है, भाव और निष्ठा से यदि कोई मनुष्य एक बार भी हरि के नाम का सिमरण कर ले तो भगवान उसे मालामाल कर देते हैं। उन्होंने कहा कि भोजन से शरीर को शक्ति मिलती है और वैसे ही भजन आत्मा का भोजन है। भक्त जब भगवान को पुकारता है तो वह दौड़े चले आते हैं, भक्त तो भगवान के दर्शन दो आंखों से करता है परंतु भगवान तो अनन्त नेत्रों से भक्त को देखते हैं, यह भगवान की अपार कृपा ही तो है। सत्संग की महिमा बताते हुए उन्होंने कहा कि जब भगवान से भक्त का तार जुड़ जाए, उसके लिए वही सत्संग है। कथा में बैठकर कथा सुनने के साथ ही कथा को भीतर बैठाने की जरूरत है। प्रियव्रत और भरत की कथा सुनाते हुए उन्होंने अनेक प्रासांगिक कथायें सुनाईं।
वहीं रायसिंहनगर स्थित केवी पैलेस में चल रही श्रीवृंदावन प्रेमरस धारा कथा में वृंदावन से आये श्रीहित मोहन महाराज ने कहा कि भगवान ने अनेक अवतार लेकर लोगों का उद्धार किया। नश्वर संसार में सब कुछ नष्ट हो सकता है परंतु भजन कभी नष्ट नहीं होता। प्रभु चरणों में जब तक प्रीति नहीं होगी तब तक बंधन ही बंधन है। अजामिल की कथा सुनाते हुए उन्होंने कहा कि उसने भगवान को नहीं बल्कि अपने पुत्र नारायण को पुकारा और भगवान ने उसका कल्याण कर दिया। कथा के दौरान श्रीसिद्धपीठ श्रीझांकीवाले बालाजी भजन मंडल के मुख्य सेवादार प्रेम अग्रवाल गुरूजी ने कथा में वृंदावन से आये श्रीहित मोहन महाराज को फूल माला पहनाकर अभिनंदन किया। इस मौके सुरेंद्र चौधरी, शंकरलाल अग्र्रवाल, सुरेंद्र सिंगल, मदनगोपाल अग्रवाल, हनुमान प्रसाद चाणानी, पवन राजपाल, योगेश वधवा सहित काफी संख्या में श्रृद्वालूगण मौजूद थे।
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