वैसे तो भारत में अमृतसर में रावण दहन के वक्त जो रेल दुर्घटना हुई ऐसी रेल दुर्घटना पहले भी हुई है। हालांकि अमृतसर जैसी ही नहीं लेकिन किसी वजह से ट्रेन पटरी से उतर गई हो या किसी साजिश का शिकार हो गई हो। जिसमे कई निर्दोष पेसेंजर मारे जाते है। पंजाब के अमृतसर में रावण दहन के वक्त ट्रेन ने करीब 60 से ज्यादा लोगो को कुचल दिया वह काफी चर्चित और विवादों से घिरी दुर्घटना है। इस रेल हादसे में जो लोग मारे गये उनके परिवार में बच्चे अनाथ हो गये। पूरा परिवार रावण देखने गया हो और रेल की चपेट में मा-बाप मारे गये हो ऐसे अनाथ बच्चो का कौन? पंजाब के मंत्री नवजोत सिध्धू जो की पूर्व क्रिकेटर भी है और कपिल शर्मा लाफ्टर शो में काफी नाम कमाया है। नवजोत सिध्धू ने वाहे गुरु के एक सच्चे सिपाही या बन्दे की तरह तुफानो में एक टिमटिमाता दिया बन इन अनाथ बच्चो की निजी जिम्मेवारी ली है। उन्होंने गुरु के नाम ये घोषणा की है।
पंजाब की धरती गुरु नानिक साब के ऐसे बन्दों से भरी पड़ी है। जिसकी सराहना होनी चाहिए। असल में सिध्धू ने ऐसे अनाथ बच्चो के भविष्य का रास्ता वाहे गुरु को साक्षी मान दिखाया है। भूकंप, रेल दुर्घटना या दंगे फसाद में कई बच्चे अनाथ हो जाते है। सरकारी तौर पर सामजिक सुरक्षा के नाम पर उनकी जिम्मेवारी ली तो जाती है लेकिन फिर उनका भविष्य बना या नहीं इसकी जानकारी मिलना या देना मुश्किल हो जाता है। सिध्धू ने अपनी निजी जिम्मेवारी ली है तब ये तय है की वे इन अनाथ बच्चो का भविष्य सुनहरा बनायेंगे। हो सकता है की इन अनाथ बच्चो में से कोई सिध्धू की तरह क्रिकेटर भी बन जाय। सिध्धू की राजनितिक आलोचना उनके विरोधी दल चाहे कितनी भी क्यों न करे लेकिन उन सब में अनाथ बच्चो की निजी जिम्मेवारी लेने की हिम्मत नहीं। विरोधी ऐसा सोच भी नहीं सकते। लेकिन सिध्धू पाजी ने वाहे गुरु की फ़तेह वाहे गुरु का खालसा की तरह कइयो के जीवन संवारने की ताउम्र जो जिम्मेवारी ली है उससे न सिर्फ उनका बल्कि मानवता का नाम भी ऊँचा हो गया है।
उन्हों ने जो रास्ता दिखया है वह काबिले तारीफ़ तो है ही लेकिन ऊँचे ऊँचे महलो में रहते और सरकार की बदौलत बने धन्ने शेठो के लिए भी अनुकरणीय रास्ता है। बड़ी बड़ी कम्पनिया सामाजिक जिम्मेवारी के नाम पैसे खर्च करती है। ऐसी बड़ी बड़ी कम्पनिया यदि इस तरह अनाथ हुए बच्चो की निजी जिम्मेवारी निभाये तो कई बच्चो का भविष्य संवर सकता है। ऐसी दुर्घटना कोई बार बार तो होती नहीं। ऐसे में यदि सिध्धू के बताये रस्ते पर चले तो मन को एक सुकून भी मिलेंगा। माना की अँधेरा है लेकिन दिया जलाना कहाँ मना है….ऐसी सिर्फ बाते करने से तो अच्छा है की वाकई में दिया जलाया जाय और तूफ़ान में घिरे अनाथ बच्चो को एक नई राह भी दिखाई जाय। सिध्धू तू सी ग्रेट हो यार…!
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