Saturday, 16 March 2019

Home
beauty
Entertainment
FASHION
Film Parmotion
फिल्म नोटबुक का अनोखा फ्लोटिंग सेट,देख कर हैरान हो जाओगे,फिल्म की पढ़े कहानी
फिल्म नोटबुक का अनोखा फ्लोटिंग सेट,देख कर हैरान हो जाओगे,फिल्म की पढ़े कहानी
मुंबई, (अनिल बेदाग)। ऐसी कई फिल्में हैं जो अपने अनोखे सेट के कारण चर्चाओं में रही हैं। ऐसे सेट करोड़ों की लागत से तैयार किए गए और फिल्म पूरी होते ही तोड़ दिए गए। निर्माता इस बात को समझते हैं कि सेट का कितना महत्व होता है इसलिए उनके निर्माण पर खुलकर पैसा बहाते हैं। ऐसा ही एक अनोखा सेट जहीर इकबाल और प्रनूतन अभिनीत तथा नितिन कक्कड़ निर्देशित फिल्म नोटबुक के लिए के लिए बनाया गया है, जो अपने आप में अनोखा है। फिल्म में 2007 के दौरान की कहानी को दिखाया गया है और फिल्म में एक झील के बीच स्कूल की कहानी चलती है इसीलिए निर्माताओं ने एक सेट बनाया, जो पानी के बीच खड़ा था।
दिलचस्प बात यह है कि इसे बनाने में 30 दिन का समय लगा और 80 क्रू सदस्यों ने हर दिन चैबीसों घंटे काम किया। इस असाधारण सेट को दो युवा लड़कियों उर्वी अशर और शिप्रा रावल द्वारा डिजाइन किया गया है। उन्होंने फिल्म नोटबुक के सेट के लिए बतौर आर्ट डिजाइनरों के रूप में काम किया। इस फ्लोटिंग सेट के बारे में बात करते हुए राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता निर्देशक नितिन कक्कड़ ने कहा, यह पहली बार है की जब मैंने एक वास्तविक स्थान पर बनाए गए सेट पर शूटिंग की है। आर्ट डिजाइनर उर्वी और शिप्रा का काम बहुत सराहनीय लगा।इस तरह का सेट बनाना बहुत मुश्किल था क्योंकि यह तैर रहा था, लेकिन यह 30 दिनों के लिए हमारा घर बन गया था। जिस दिन सेट पर काम पूरा हुआ और सेट निकाला जाना था तो मेरा दिल भर आया था। इस सेट से बहुत से यादें जुड़ हुई थीं। अब मैं इन यादों को जीवन भर संजोऊंगा।
नोटबुक को कश्मीर की खूबसूरत घाटियों में फिल्माया गया है, जिसमें दो प्रेमी फिरदौस और कबीर की प्रामाणिक प्रेम कहानी के साथ-साथ बाल कलाकारों की दमदार कास्टिंग देखने मिलेगी जो कहानी में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
Tags
# beauty
# Entertainment
# FASHION
# Film Parmotion
Share This
About Report Exclusive
Film Parmotion
लेबल:
beauty,
Entertainment,
FASHION,
Film Parmotion
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
आपके सुझाव आमंत्रित
क्या कॉरपोरेट घरानों द्वारा चलाए जा रहे या पारिवारिक विरासत बन चुके मीडिया संस्थानों के बीच किसी ऐसे संस्थान की कल्पना की जा सकती है जहां सिर्फ पत्रकार और पाठक को महत्व दिया जाए? कोई ऐसा अखबार, टेलीविजन चैनल या मीडिया वेबसाइट जहां संपादक पत्रकारों की नियुक्ति, खबरों की कवरेज जैसे फैसले संस्थान और पत्रकारिता के हित को ध्यान में रखकर ले, न कि संस्थान मालिक या किसी नेता या विज्ञापनदाता को ध्यान में रखकर. किसी भी लोकतंत्र में जनता मीडिया से इतनी उम्मीद तो करती ही है पर भारत जैसे विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में मीडिया के वर्तमान माहौल में संपादकों को ये आजादी बमुश्किल मिलती है. वक्त के साथ-साथ पत्रकारिता का स्तर नीचे जा रहा है, स्थितियां और खराब होती जा रही हैं. अब हम निष्पक्ष व् स्वतंत्र रूप से जुड़ने का काम करने का प्रयास कर रहे हैं.
No comments:
Post a comment
इस खबर को लेकर अपनी क्या प्रतिक्रिया हैं खुल कर लिखे ताकि पाठको को कुछ संदेश जाए । कृपया अपने शब्दों की गरिमा भी बनाये रखे ।
कमेंट करे