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बेटे की पीड़ा सहते खुद का दर्द भूल गई ,किस्सा मां की ममता का, महिला दिवस से ठीक पहले ख़ास-पेशकस

चारणवासी । घर में बेटा पैदा होते है तो मां-बाप के सपने बुढ़ापे में सुख की आस में उडान भरते हैं7 पर जब 25 साल का जवान बेटा पढऩे व खेलने-कूदने की बजाय 24 घंटे चारपाई पर दर्द से कराहता हो तो उस मां का दिल जार-जार रोता हैं। फिर भी बेटे की तालीम करने के लिए दिन-रात एक करती है तो बस मां। ये कहानी चारणवासी के रोशनी देवी की हैं। जो जीवन की तमाम मुश्किलों को हराते हुऐ बेटे की परवरिश में लगी हैं। नंदकिशोर ने उसकी पहली संतान के रूप में जन्म लिया। इस पर पूरे परिवार में खुशियां मनाई गई। दो-तीन वर्ष की आयु तक वह स्वस्थ्य रहा। पर आज वह बोलता,न चलता और ना ही दिखाइ्र देता। हाथ-पैर काम नहीं करते। नंदकिशोर आज 25 सालों से केवल दूध के सहारे ही जिंदा हैं। खास बात तो ये है कि नंदकिशोर की मां रोशनी देवी भी एक पैर से अपाहिज हैं। चलने में परेशानी होती है लेकिन मां होने के कारण लाचार बेटे को दूध पिलाने से लेकर उसे नित्य कर्म करवाने,नहलाने का उपक्रम पूरा कर रही हैं। मां कि ममता अपाहिज बेटे से एक पल के लिए जुदा होने की मौहलत नहीं देती। गरीब परिवार होने के कारण मजदूरी करना जरूरी हैं लेकिन मां के लिए अपने लाचार बेटे की परवरिश करना भी बेहद जरूरी हैं। मां का साहस की खुद अपने पैरों पर तो ठीक से खड़ी ही नहीं हो पा रही और बेटे की जिंदगी का बोझ झेलते-झेलते खुद का ही दर्द भूल गई।

लेखक- जयलाल वर्मा एक पत्रकार

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