कविता पत्नी पर
नायिका पर तो बहुत हो चुकी
एक पत्नी का दर्द सरेआम लिखो
एक उसको छोड़ सारी दुनिया का दर्द
उठाए फिरते हो
तुम जो आगए उसकी जीवन में
भाग्यशाली और किस्मत थी उसकी
वह अबला कहां रही
किस प्रियसी किस रूपसी के लिए लिखते हो
कभी कभी उसके सिंगार की भी बात करो
जिसने किया है सोलह सिंगार
सिर्फ तुम्हें रिझाने के लिए
क्या महसूस किया है तुमने कभी उसकी थकान को उसकी कमर का दर्द और जब उठती है
सुबह तो किसी चंचल हिरनी की तरह
भाग भागकर घर के सारे काम को
अंजाम देती है कभी देखा है
उसकी चंचलता को
जब देखती है तुम्हें अपनी प्रेम भरी नजरों से क्या दिखता है तुम्हें कभी उसका प्रेम
या फिर उसका प्रेम से देखना
सिर्फ उसका एक फर्ज है और तुम्हारा अधिकार
उसमें प्रयसी सी बात नहीं
कितना लिखा है तुमने औरत की सम्मान पर
उसके अत्याचार पर
उसके लिए कितनी लड़ाइयां लड़ी हैं
क्या उसके हक के लिए कोई लड़ाई लडी है तुमने?
क्या उसे अधिकार नहीं
कि तुम उसके लिए भी कभी लड़ो
झांको कभी उसके मन में क्या
वह भी तो उसी का शिकार नहीं
जिस समस्या के समाधान का बेड़ा तुमने उठाया है
महिलाओं को कितना आदर देते हो
महसूस करो कहीं वही तो आदर के लिए तरसती ना रह गई हो
बदलाव की शुरूवात खुद से होती है
तुम बदलोगे तो आधी दुनिया बदल जाएगी
कवियित्री
स्वाति गौतम की रचना
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