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महारानी से उठने लगा जनता का विस्वास! खिसकने लगा जनाधार! सबक दिखाने को तैयार जनता.....!!

वसुंधरा राजे,राजस्थान मुख्यमंत्री

केसरीसिंहपुर (गुरविन्द्र बराड़) हाल ही में राज्य में आए उपचुनावों के नतीजों ने राज्य की ही नही देश की राजनीति में हलचल पैदा करते हुए भाजपा के लिए मुश्किलों का पहाड़ खड़ा कर दिया है।

2013 में हुए विधान सभा चुनावों में जहा भाजपा ने एक तरफा विधानसभा सीटो पर अपना अधिकार कायम करते हुए राज्य को भगवा में कर दिया था । लेकिन राज्य की सत्ता धारी सरकार को उपचुनावों में जनता ने चार वर्ष के कार्यकाल को नकारते हुए बड़ा झटका दे डाला।इसे केंद्र की मोदी सरकार को जनता की अपेक्षाओ पर खरा न उतरा कहे या राज्य की वसुंधरा सरकार को ? इन में से कोई एक तो गुनहगार है जो जनता की अपेक्षाओ पर खरा नही उतरा ।

करणपुर विधानसभा में भी बुरी गत

श्री करणपुर विधानसभा की बात की जाए तो भाजपा के इसी वर्ष होने वाले विधान सभा चुनाव किसी चुनोती से कम नही है। क्योंकि दार जी का विरोध चर्म पर है । जनता की उम्मीदो पर वे खरे नहीं उतर पाए । उनके कारिंदों ने भी खूब उन्हें परेशान किया । इसी कारण तूफानी सम्पर्को में जुटे खंम्बे वाले दार जी से लोग जुड़ने लगे है । लगातार उनका प्रभाव बढ़ रहा है । तो एक और कभी हाथी पर सवार रहे फूल थामने वाले भी फूल के लिए भारी मुश्किल खड़ी करने की तैयारी में जुटे हुए है । उपचुनावों में मिली करारी हार ने 2018 में फिर से राज्य की सत्ता में आने की तैयारी कर रही फूल वाली पार्टी से लोग जाता हुआ जनाधार देखते हुए धीरे धीरे साथ छोड़ने लग गए है । भाजपा ने भारी बहुमत के साथ सत्ता में आते ही रीढ़ की हड्डी कही जाने वाले सक्रिय कार्यकर्ताओ को दरकिनार करते हुए बूथों पर भाजपा का विरोध करने वाले लोगो को सत्ता सुख भोगने के लिए पार्टी के साथ जोड़कर राज्य सरकार द्वारा दी जाने वाली नियुक्तियो पर पदासीन करते हुए सरकारी विभागों तक की जिम्मेदारिया उनके हाथों में दे डाली। जिनको
भाजपा की रिति नीतियों की जानकारी तक नही है। अब देखना है वे फूल को मुरझाने को कैसे रोक पाते है ? वहीँ चुनावो में दरिया बिछाने वाले कार्यकर्ता मन मसोस कर विरोध में उतरने की तैयारी में जुट गए है । यह समय फूल वालो के लिए किसी मुश्किल घड़ी से कम नही होगा । पूर्व गहलोत सरकार द्वारा शहरी क्षेत्र के लोगो के लिए शुरू की गई मुख्यामंत्री आवास योजना को वसुंधरा सरकार ने अधर झूल में लटकाकर छोड़ दिया । लोग बिना छतों के वर्षो से बैठे कोस रहे है । 

सेमीफाइनल चुनावो से नहीं लिया सबक

जिस वक्त वित्त मंत्री संसद में देश का बजट पेश कर रहे थे उस समय राजस्थान में हुए 3 उपचुनावों के रुझान भी आ रहे थे। देश की नजर बजट पर थी तो राजस्थान में बीजेपी और कांग्रेस की नजर नतीजों पर लगी थी ।इसकी बड़ी वजह सिर्फ सियासी है क्योंकि इन उपचुनावों को विधानसभा चुनाव से पहले सेमीफाइनल की तरह देखा जा रहा था। बजट के बाद नतीजे भी आ गए लेकिन रूझानों ने पहले ही कांग्रेस का 'हाथ' थाम लिया था। 


तीनों सीटों पर कांग्रेस को यादगार जीत नसीब हुई वो जीत जो उसके लिए संजीवनी से कम नहीं कही जा सकती । राज्य दर राज्य सिमटती कांग्रेस के लिए राजस्थान की 3 सीटों की जीत कांग्रेस के नए अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए तोहफा है तो प्रदेश कांग्रेस सचिन पायलट के पास अपनी पीठ थपथपाने का मौका भी मिल गया।

उपचुनाव के नतीजों से ये समझा जाए कि राज्य में जनता का ‘महारानी’ पर से विश्वास उठ रहा है?

क्या गैंगस्टर आनंदपाल एनकाउंटर विवाद, फिल्म पद्मावत विवाद और पार्टी के भीतर की कलह की वजह से वसुंधरा सरकार को नुकसान हुआ? वजह जो भी हो लेकिन नतीजा तो पार्टी के लिए निराशाजनक है।


सचिन पायलट तीनों सीटें जीतने के बाद मुख्यमंत्री से इस्तीफा भी मांगने लगे । दरअसल इस युवा नेता के जोश के पीछे कई वजहें हैं।अरसे बाद कांग्रेस को बीजेपी से सीटें छीनने का मौका मिला है।


गुजरात में इसकी शुरुआत हुई तो अब राजस्थान के रण में ये दिन देखने को मिला।भले ही ये उपचुनावों में मिली जीत है लेकिन उपचुनाव के नतीजों की अहमियत को दरकिनार नहीं किया जा सकता है। इनकी अहमियत तब और बढ़ जाती है जब कोई सत्ताधारी पार्टी अपनी जीती हुई सीटें गंवा दे।भले ही बीजेपी इसे कांग्रेस की तात्कालिक उपलब्धि माने लेकिन कांग्रेस इस जीत की सीढ़ी पर पांव रखकर विधानसभा चुनाव को अगले चुनाव में भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी जो इसी साल के आखिर मे होने है । इससे अगले साल लोकसभा चुनाव भी हैं। कांग्रेस को ऐसी ही संजीवनी की तलाश थी जो अजमेर-अलवर और मांडलगढ़ से मिली । 

अभी भी समय जमीन का करे सुधार 

साल 2014 में मोदी-लहर में फूल ने लोकसभा की सारी सीटें जीत कर इतिहास रचा दिया था। लेकिन कब्जे वाली इन दो सीटों पर मिली हार के बाद बीजेपी को फिक्रमंद होने की जरूत है क्योंकि विधानसभा की सीट भी वो हार चुकी है।
जाहिर तौर पर नतीजों से सबक लेते हुए बीजेपी अपनी रणनीति में बदलाव अवश्य करेगी। उप चुनावों को भाजपा ने गम्भीरता से लिया था । इसीलिए राज्य सरकार के सभी मंत्रियो ने अपने कामकाज छोड़कर चुनाव प्रचार में अपनी ताकत झोंक रखी थी । लेकिन सभी मंत्रियो को जनता जनार्दन ने पूरी तरह नकारते हुए हाथ के पक्ष मे अपना मतदान करते हुए मजबूती प्रदान की वही सत्ता के मद में चूर सरकार के नुमाइंदों को नकार दिया।


अब पराजय से बीजेपी के माथे पर चिंता की लकीरें खुल कर उभर आई हैं । सत्ताधारी पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी । राज्य की वसुंधरा सरकार के लिए ये झटका साफ इशारा है कि असंतोष की उपजी लहर को विधानसभा चुनाव तक सुनामी बनने से रोका जाए । क्योंकि इससे पहले राजस्थान के निकाय उपचुनाव में भी बीजेपी को झटका मिल चुका है । तब कांग्रेस ने चार सीटों पर कब्जा जमाया था । सीएम वसुंधरा के बेटे दुष्यंत के गढ़ मे ही बीजेपी ने 2 सीटें गंवा दी थीं । जिसके बाद राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने नतीजों को सत्तासीन की राज्य में उल्टी गिनटी करार दे दिया था । 


अब उपचुनावो में मिली जीत कांग्रेस को राजस्थान में आने वाले चुनावी समर में कमर कसने का टॉनिक दे गई है । वैसे भी राजस्थान में हर पांच साल में सरकार बदलने का वोटर का रिवाज है । ऐसे में कांग्रेस के पास वापसी का मौका है । लेकिन कांग्रेस को राज्य में चुनावी सियासत के अलाव एक भीतरी रस्साकशी से भी दो चार होना पड़ेगा । राज्य में सचिन पायलट बनाम अशोक गहलोत के बीच महत्वाकांक्षाओं की खींचतान भी है ।

हाथ में भी जद्दोजहद की कवायद 

गुजरात प्रभारी के तौर पर राज्य के पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने अच्छा प्रदर्शन किया था।
जिसके बाद उनका पार्टी के भीतर सियासी कद बढ़ा है। ऐसे में उनकी बढ़ती ताकत युवा नेता सचिन पायलट की सियासी महत्वाकांक्षाओं को झटका दे सकती है।भविष्य में अगर विधानसभा चुनावों में नतीजे कांग्रेस के पक्ष में आए तो सीएम पद को लेकर पार्टी के दो धड़ों में तलवारें खिंच सकती हैं। फिलहाल उपचुनाव में तीनों सीटें जीतने के बाद कांग्रेस के पास अब गहलोत के विकल्प के तौर पर युवा सचिन पायलट सामने हैं।

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