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श्रीमान चुनाव आयोगजी,पहले ईवीएम तो ठीक कीजिये जनाब,बाद में पेड़ न्यूज़…!


भारत के चुनाव आयोग में टी.एन.षेशान के नाम से रूलिंग पार्टी के दिग्गज नेता भी हिल जाते थे। उन्होंने ही चुनाव के सभी नियमों का इतनी सख्ती से अमल करवाया की उसको तोड़ने की हिमत किसी की नहीं होती थी। प्रत्याशी नामांकन के लिए कितने लोग होंगे,कितने व्हीकल होंगे वह बार बार गिन कर प्रत्याशी नामांकन के लिए जाते थे। आज शेषन नहीं किन्तु उन्हें याद किया जाता है। वर्तमान चुनाव आयोग में कोई षेशान है या नहीं ये तो वे ही जाने लेकिन वर्तमान आयोग के कुछ फैंसले ऐसे थे जो उनके खिलाफ ऊँगली उठाने को मजबूर करते है। मसलन गुजरात और हिमाचल विधानसभा चुनाव के बीच काफी अंतर रखना जो पहले नहीं होता था। आप पार्टी के २० विधायको को सुने बैगर ही उनकी सदस्यता समाप्त करना और बाद में कोर्ट द्वारा उसके खिलाफ स्टे आर्डर देना और सब से बड़ा अहम मुद्दा ईवीएम मशीन की विश्वसनीयता के बारे में। हाल ही में दिल्ही के जे.एन.यु. यूनी. के चुनाव में ईवीएम का उपयोग किया गया। ९ बटन थे। लेकिन १०वे बटन से वोट आये…! मामले को रफादफा करते हुए चुनाव आयोग ने ये कह कर पल्ला झाड दिया की हमने तो इवीएम मशीन दिए ही नहीं…! मानो चुनाव के लिए ईवीएम मशीन बाजार में किराए से मिल रहे हो…!
ऐसे चुनाव आयोग ने अख़बार विरोधी रवैया लेते हुए सुप्रीम कोर्ट में ऐसा सुझाव दिया की अखबारों में एकतरफा प्रशंसात्मक खबरों को पेड़ न्यूज़ माना जाय। चाहे उसके लिए पैसे दिए जाने का कोई सबूत हो या न हो। ऐसी खबरे नेता अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके छपवाते है। कोई राजनेता अपने गुणगान गाते हुवे मतदाता को अपने पक्ष में वोट देने को कहे तो वह खबर पेड़ न्यूज यानी अखबार को पैसे देके या न देकर छपवाई मान ली जाय। भला ये भी कोई सुझाव है? चुनाव में नेता- राजनेता अपने गुणगान नहीं गायेंगे तो क्या प्रतिपक्ष के गुणगान गायेंगे? प्रधानमंत्री मोदीजी राहुल की तारीफ़ करेंगे या राहुलजी मोदी की तारीफ़ करेंगे ? मान लिया जाय की ऐसे गुणगान वाली खबरे पेड़ न्यूज है तो क्या चुनाव आयोग में इतनी हिमत है की वह चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री से कहे की आप अपनी सरकार के गुणगान न गाये….? श्रीमान रावतजी बताये की आप किसी मुख्यमंत्री से कहेंगे की कृपया कर मतदाताओ को अपनी सरकार की उपलब्धियों को न गिनाये…?

वर्तमान चुनाव आयोग के खिलाफ विपक्षी दलों द्वारा संगीन आरोप लगे है ईवीएम मशीन को लेकर। लेकिन आयोग अभी भी यह विश्वास दिलाने में सफल नहीं हुवा की ईवीएम से कोई छेड़खानी नहीं की जाती। चुनाव के दौरान ऐसे कई मामले गरबड़ी के सामने आये की बूथ में जितने मतदाता दर्ज थे उससे ज्यादा वोट गिनती में निकले। ये के.लाल का जादू कौन करता है भला ? किसी एक दल को दिया वोट दुसरे दल में कैसे जाता है? क्या उस वोट को निश्चित दल से प्यार है क्या? इन सवालो के जवाब या सुझाव आयोग के पास नहीं। लेकिन अखबारों के खिलाफ देने को सुझाव हाजिर है। पहले ईवीएम ठीक हो बाद में पेड़ न्यूज को सुलझाइयेगा।

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