Ad Code

Recent Posts

महत्वपूर्ण:-राफेल न बन पाएगी बोफोर्स


कांग्रेस किस दिशा में चल रही है उसे खुद नही पता। हजारों मुद्दे सरकार के खिलाफ है लेकिन सत्ता में रहने की आदी रही कांग्रेस को विरोध का तरीका नही आया। भाजपा जैसी पार्टी जिससे वर्षो विरोध दर्ज कराने का प्रमाणपत्र हासिल कर रखा है। जिसके नेताओं ने सालों साल ‘‘ पापड़ बेल ’’ सत्ता पाई है। जिसके नेताओं ने प्याज और मंहगाई के नाम पर प्रदर्शन के दौरान आलू प्याज की माला, थालियाॅ पीट कर कांग्रेसी सरकार को हिलाकर दिया हो। उस सरकार को केवल अकेले राहुल गांधी ( क्योकि इनके साथ खार्टी कांग्रेसी है ही नही) क्या घेर पाएगें। राफेल पर पहले से कसरत कर के बैठी भाजपा के सामने कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी का राफेल को बोफोर्स में तब्दील करना आसान नही है।

आपकों याद होगा कि साल 1987, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी मिस्टर क्लीन की छवि लेकर चल रहे थे। तभी बोफोर्स तोपों की खरीद में दलाली का मामला उछला, भ्रष्टाचार के इस मुद्दे पर विपक्षी एकता ने राजीव गांधी और उनकी सरकार पर ताबड़तोड़ हमले किये। और साल 1989 आते आते बोफोर्स बड़ा चुनावी मुद्दा बना और राजीव सरकार हार गई।

अब कांग्रेस के नेता राफेल विमान सौदे को लेकर जिस तरह पहले नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी कैग के पास गए और फिर केंद्रीय सतर्कता आयुक्त के पास उससे इसकी ही पुष्टि होती है कि वे इस मसले को तूल देने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। ऐसा शायद इसलिए और है, क्योंकि राफेल सौदे को घोटाला साबित करने के अभियान की अगुआई खुद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कर रहे हैं। वह हर दिन एक नए आरोप के साथ ही सामने नहीं आ रहे, बल्कि कहीं अधिक तीखी और कई बार तो अमर्यादित भाषा का भी इस्तेमाल कर रहे हैं। इसके जवाब में भाजपा भी उनके खिलाफ आक्रामक रवैये का परिचय दे रही है। अगर राफेल सौदे पर आरोप-प्रत्यारोप का यह सिलसिला लंबा खिंचा तो जुबानी जंग का और तीखा होना तय है। यदि राहुल गांधी को यह यकीन हो गया है कि राफेल सौदे में सचमुच घोटाला हुआ है तो फिर उनके साथियों को इधर-उधर जाने के बजाय वे तथ्य सबके सामने रखने चाहिए जिनके आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंच जा सके कि इस सौदे में गड़बड़ी हुई है। अगर घोटाला हुआ है जैसा कि शोर मचाया जा रहा है तो फिर पैसे का लेन-देन हुआ होगा और वह एक खाते से दूसरे या फिर तीसरे-चैथे खाते में भी गया होगा-ठीक वैसे ही जैसे बोफोर्स तोप सौदे में देखने को मिला था। क्या कांग्रेसी नेताओं के पास ऐसे कोई प्रमाण हैं? अगर हैं तो फिर वे कैग और सीवीसी का दरवाजा खटखटाने में वक्त जाया क्यों कर रहे हैं? आखिर वे घोटाले के कथित सुबूतों के साथ अदालत क्यों नहीं जाते? क्या प्रधानमंत्री के खिलाफ तीखी भाषा के इस्तेमाल से राहुल गांधी के आरोप प्रमाण में तब्दील हो जाएंगे?1अगर राहुल अथवा अन्य विपक्षी नेता यह सोच रहे हैं कि घोटाला होने का शोर मचाते रहने से उनकी बात सही मान ली जाएगी तो ऐसा होने वाला नहीं है। वैसे भी कांग्रेसी नेता अभी तक यह स्पष्ट नहीं कर पाए हैं कि राफेल सौदे में क्या अनियमितता हुई है? वे कभी राफेल विमान ज्यादा कीमत पर खरीदने का आरोप लगाते हैं तो कभी इस पर हैरान-परेशान होते हैं कि राफेल बनाने वाली कंपनी दासौ ने अनिल अंबानी की कंपनी को साझीदार क्यों बना लिया? बेहतर हो कि वे इस पर हैरान-परेशान होने के बजाय यह बताएं कि इसमें गलत क्या है? वे यह भी बताएं तो और बेहतर कि आखिर उन्हें अनिल अंबानी की कंपनी से इतनी परेशानी क्यों है ? कांग्रेस को शायद याद है कि, बोफोर्स के वक्त 64 करोड़ की दलाली का आंकड़ा विपक्ष ने बार-बार ऐसे ही उछाला जो सबकी जुबान पर चढ़ गया। कुछ इसी तर्ज पर कांग्रेस भी आंकड़ों को सरल और सीधे तरीके से चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही है। मुद्दा खत्म ना हो इसके लिए राहुल , बाकी नेता और कांग्रेस, विपक्ष को साथ लेकर आगे भी इस मुद्दे को नए-नए तरीके से उठाते रहेंगे. इसी रणनीति के तहत कांग्रेस लोकसभा में इस मुद्दे पर पीएम और रक्षा मंत्री पर गलतबयानी का आरोप लगाकर विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव लाने की तैयारी में हैं. वहीं कभी यूपीए सरकार की धुरविरोधी रही आम आदमी पार्टी भी इस मुहिम में कांग्रेस के साथ खड़ी है, पार्टी के राज्य सभा सांसद संजय सिंह भी इस मुद्दे पर राज्य सभा में पीएम मोदी को घेर रहे हैं। कुल मिलाकर 1989 में तो विपक्ष ने कांग्रेस के खिलाफ एक रक्षा सौदे को हथियार बनाकर उसे सियासी फर्श पर ला दिया था, ठीक वैसे ही अब कांग्रेस विपक्ष के साथ मिलकर एक रक्षा सौदे के जरिये सियासत के इतिहास को दोहराना चाहती है.कानूनविदों का मानना है कि राफेल सौदे में यदि अनिल अंबानी पाक-साफ हैं तो उनको डरने की जरूरत नहीं है। उनको तो अपने सारे साक्ष्य के साथ सामने आना चाहिए और बताना चाहिए कि सौदे का तथ्य। लेकिन यदि प्रमुख विपक्षी पार्टी व अन्य गैर सत्ताधारी राजनीतिक दलों को वकील से नोटिस भेजवाकर डराने की कोशिश कर रहे हैं, तो इसमें वह कामयाब नहीं होने पाएंगे।निरूसंदेह कुछ सवाल मोदी सरकार के सामने भी हैं। सरकार की कोशिश राहुल गांधी के आरोपों का जवाब देते रहने के बजाय इस मसले का पटाक्षेप करने की होनी चाहिए। राफेल सौदे को लेकर सरकार का सवालों के जवाब देने की मुद्रा में नजर आना कोई प्रभावी रणनीति नहीं। उसकी कोशिश तो उन कारणों का निवारण करना होना चाहिए जिनके चलते राहुल गांधी राफेल सौदे को घोटाला बताने में लगे हुए हैं। वह इसकी अनदेखी नहीं कर सकती कि कांग्रेस राफेल सौदे को राजनीतिक मसला बनाने की कोशिश में फ्रांस से संबंध खराब होने की भी चिंता नहीं कर रही है।

अब तीस साल बाद कांग्रेस इसी हथियार से इतिहास को दोहराने की कोशिश में है. हां, फर्क यह है कि, इस बार राजीव गांधी के बेटे और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी विपक्ष को साथ लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 2019 में सत्ता से बाहर करने की रणनीति बना रहे हैं। इतना सब होने के बावजूद यह कहना अतिश्योक्ति न होगा कि कांग्रेस अपनी धार खोती जा रही है। कांग्रेस के नेता केवल राहुल के सहारे दिख रहे है। ऐसे में इकलौते राफेल के मुद्दे पर भारी भरकम हो चुकी भाजपा सरकार को घेरना मुमकिन नही।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ