Advertisement

Advertisement

यस बैंक पर भारी पड़ा RBI का फैसला,एक झटके में निवेशकों के डूबे 25 हजार करोड़,जाने कैसे


नई दिल्ली(जी.एन.एस) शुक्रवार को बाजार खुलते ही यस बैंक के शेयर बाजार में भारी गिरावट आई है। यस बैंक का शेयर 34 फीसदी टूट गया। भारतीय रिजर्व बैंक ने यस बैंक के सीईओ राणा कपूर का कार्यकाल घटाकर सिर्फ 4 महीने का कर दिया है। आरबीआई ने उन्हें 31 जनवरी, 2019 तक पद पर बने रहने की अनुमति दी है।
राणा कपूर के कार्यकाल घटने के बाद ब्रोकरेज हाउसेज ने यस बैंक शेयर डाउग्रेड करने के साथ टारगेट प्राइस घटा दिया है। इससे शुक्रवार के कारोबार में यस बैंक के शेयर में भारी गिरावट आई। बीएसई पर शेयर 34 फीसदी टूटकर 210.10 रुपए के भाव पर आ गया। शेयर में गिरावट से मिनटों में यस बैंक के निवेशकों के करीब 25 हजार करोड़ रुपए डूब गए। बुधवार को यस बैंक का मार्केट कैप 73,329 करोड़ रुपए था। जो आज 210.10 रुपए के लो लेवल पर 24,957.17 करोड़ रुपए घटकर 48371.83 करोड़ रुपए हो गया।
आरबीआई ने यस बैंक से कहा है कि वह जनवरी, 2019 तक कपूर के उत्तराधिकारी की तलाश कर ले। कपूर 2004 में बैंक की स्थापना के बाद से उसके एमडी एंड सीईओ पद पर हैं। उन्होंने 31 अगस्त, 2021 तक 3 साल का सेवा विस्तार मांगा था। हालांकि, रिजर्व बैंक ने उनके इस आग्रह को नहीं माना। इस साल जून में यस बैंक के शेयरधारकों ने बैंक के एमडी एंड सीईओ पद पर राणा कपूर को 3 साल के लिए पुन: नियुक्ति को मंजूरी दी थी। इस फैसले पर केन्द्रीय बैंक को अंतिम रूप से मुहर लगानी थी। कपूर का मौजूदा कार्यकाल 31 अगस्त को समाप्त हो गया है। रिजर्व बैंक ने 30 अगस्त को कपूर की बैंक के एमडी और सीईओ पद पर पुन: नियुक्ति को मंजूरी दे दी थी लेकिन उनके कार्यकाल की अवधि नहीं बताई थी।

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आर.बी.आई.) ने यस बैंक के सी.ई.ओ. राणा कपूर पर कार्रवाई करते हुए उनको 3 साल का कार्यकाल पूरा करने से रोक दिया। केन्द्रीय बैंक ने इस कार्रवाई से बैंकिंग सैक्टर के मैनेजमैंट से लेकर केन्द्र सरकार तक को कड़ी चेतावनी दी है। बैंक ने पहली चेतावनी सीधे-सीधे सी.ई.ओज को दी है कि वे बैंक में अपने शेयरों के दाम बढ़ाने के लिए आजाद हैं लेकिन हवा-हवाई तरीके से नहीं। राणा कपूर को आर.बी.आई. की नाराजगी इसलिए झेलनी पड़ी क्योंकि उन्होंने फंसे कर्ज को भी नॉन-परफॉर्मिंग एसैट्स (एन.पी.ए.) घोषित नहीं किया। सिर्फ यस बैंक ही ऐसा करने वाला नहीं है। आर.बी.आई. की ओर से की गई बैंकों की एसैट क्वॉलिटी की जांच से ऐक्सिस बैंक में भी ऐसी ही समस्याएं सामने आईं और सी.ई.ओ. शिखा शर्मा का कार्यकाल बढ़ाने पर भी पाबंदी लग गई। वह इस वर्ष के आखिर में ऐक्सिस बैंक से हट जाएंगी। लेकिन शिखा शर्मा एक प्रोफैशनल मैनेजर हैं तो राणा कपूर यस बैंक के सह-संस्थापक हैं और उनका यस बैंक में शेयर है। आर.बी.आई. चाहता है कि कपूर 31 जनवरी के बाद अपने पद से हट जाएं।

तीसरी चेतावनी यस बैंक के चेयरमैन अशोक चावला और आई.सी.आई.सी.आई. बैंक के चेयरमैन गिरीश चंद्र चतुर्वेदी के लिए है। ये दोनों पूर्व में नौकरशाह रह चुके हैं। उनकी पुराने बॉस, यानी भारत सरकार ने भले ही गुड गवर्नैंस पर बहुत ध्यान नहीं दिया हो लेकिन आर.बी.आई. को उनसे और उनके बोर्ड से बेहतरी की उम्मीद है। चतुर्वेदी पूर्ववर्ती आई.सी.आई.सी.आई. की सी.ई.ओ. चंदा कोचर पर हितों के टकराव का आरोप लगने पर तुरंत उनकी साफ-सुथरी छवि का प्रमाण पत्र देने लगे। बोर्ड ने बाद में जाकर स्वतंत्र जांच का आदेश दिया। आर.बी.आई. का स्पष्ट संदेश है कि इस तरह सी.ई.ओ. की पूजा प्रथा खत्म होनी ही चाहिए। आर.बी.आई. गवर्नर उर्जित पटेल की चौथी चेतावनी सरकार को है। जब केन्द्र सरकार ने 13 लाख करोड़ रुपए के पी.एन.बी. फ्रॉड का दोष आर.बी.आई. के मत्थे मढऩे की कोशिश की थी तो पटेल ने स्पष्ट कहा था कि उनके पास पी.एन.बी. जैसे सरकारी बैंकों पर प्राइवेट बैंकों जितना अधिकार नहीं है। पहले ऐक्सिस और अब यस बैंक पर कड़े कदम उठाकर वह सरकार को याद दिलाना चाहते हैं कि जहां उनके पास अधिकार है, वहां कठोर कार्रवाई हो रही है। मसलन उनका इशारा यह है कि मुश्किल में फंसे पावर प्लांट्स (ऊर्जा संयंत्रों) को दिए लोन फंस जाने पर बैंकों को अपने बट्टे खाते में डालने का आइडिया सही नहीं है। इस मामले में आर.बी.आई. कुछ नहीं कर सकता, भले ही बैंकर खुद इस पर कड़े निर्णय की चाहत क्यों नहीं रखते हों।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

Advertisement

Advertisement