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वैश्विक तापमान में 1 डिग्री से. की बढ़ोतरी, 2030 तक भारत में मुश्किल होगे हालात: रिपोर्ट


नई दिल्ली(जी.एन.एस) जलवायु परिवर्तन पर दुनिया की सबसे बड़ी समीक्षा रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि भारत को 2015 की ही तरह जानलेवा गर्म हवाओं का सामना करना पड़ सकता है। गर्मी के प्रकोप से 2015 में लगभग 2500 लोग मारे गए थे। दक्षिण कोरिया में ‘इंटरगवर्नमेंट पैनल आॅन क्लाइमेट चेंज’ (आईपीसीसी) के 48वें सत्र में यह रिपोर्ट जारी की गई है।

अगर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों पर हम ध्यान दें तो यह औद्योगिक स्तर से पहले ही 1.5 सेल्सियस तक पहुंच चुकी है। धरती के दो तिहाई भाग में पानी और सिर्फ एक तिहाई भाग ही जमीन है जो कि रहने लायक है। वैश्विक तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। रिपोर्ट के अनुसार, ग्रह 2030 की शुरूआत में ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के हमारे वर्तमान स्तर के आधार पर महत्वपूर्ण स्तर पर पहुंच जाएगा।
अगले कुछ वर्षों में अधिक से अधिक जान बचाने के लिए महत्वपूर्ण कार्रवाई करने की आवश्यकता है। कार्बन डाइऑक्साइड के वैश्विक उत्सर्जन को वर्ष 2030 तक हमें 20 साल पहले के 2010 के स्तर 45% तक लाने की आवश्यकता होगी और गर्मियों में तापमान के बढ़ते स्तर को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बनाए रखने के लिए 2050 के आसपास पर्यावरण के शुद्धता स्तर पर पहुंचने की आवश्यकता है। साथ ही तापमान को कम करने के लिए ऊर्जा, उद्योग, भवनों, परिवहन और शहरों में व्यापक बदलाव की आवश्यकता होगी।

ग्रीसलैंड के उत्तर-पश्चिमी तट से नासा के ऑपरेशन आइस ब्रिज रिसर्च एयरक्राफ्ट से समुद्र में बर्फ देखी जाती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि आर्कटिक जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा प्रभावित रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2015 पेरिस जलवायु समझौता इसका प्रत्यक्ष परिणाम है। 2015 में कार्बन उत्सर्जन में कटौती को लेकर पेरिस में एक समझौता हुआ था। इस समझौते में सभी 197 सदस्य देशों में दुनिया भर के तापमान में होने वाली बढ़ोतरी को 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने और 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य पर सहमति जताई, जबकि विकासशील देशों को इसमें आर्थिक सहायता समेत कुछ छूटें दी गई थीं।

समझौते में भारत और चीन जैसे विकासशील देशों को दी गई छूट से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप नाराज हैं। उनका मानना है कि जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग मनगढ़ंत बातें हैं, वास्तव में इससे अमेरिका का आर्थिक हित प्रभावित होता है इसलिए ट्रंप ने पेरिस समझौते को मानने से इनकार कर दिया था।

आईपीसीसी रिपोर्ट हमेशा सदस्य राष्ट्रों की आम सहमति के साथ पारित होती है। ऐसे में विशेषज्ञों और कई जलवायु वार्ता पर्यवेक्षकों का मानना है कि अमेरिकी वार्ताकारों ने रिपोर्ट का समर्थन नहीं किया, लेकिन इसकी रिलीज से यह साफ जाहिर है कि ट्रंप प्रशासन के सदस्य जलवायु विज्ञान की सच्चाई और वास्तविकता से इनकार नहीं कर सकते है।

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