अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष
महिलाओ का सम्मान हक और अधिकार
आम तौर पर शिक्षा ने महिला अधिकारों को पाने के लिए जागरूकता पैदा की है। जेसे -जेसे शिक्षा में जागरूकता आ रही है नारी शक्ति मजबूत हो रही है। आधुनिक युग में अगर महिलाओं पर कहीं अत्याचार हो भी रहे हैं तो वहाँ जागरूकता,शहनशीलता और सूचना क्रांति का दुरूपयोग के कारण होगा।
शिक्षा का उदेश्य संस्कार से जुड़ना
अक्सर हम आधुनिक युग में रूपये पैसों की चकाचौंध में अंधे हो गये हैं। हमारी सोच सामाजिक कम और अर्थगत ज्यादा हो गयी है। ऐसे में हमारे संस्कार उन सामाजिक मूल्यों का निर्वाह नही कर पा रहे हैं जो जरूरी है। सामाजिक संस्कार जगाने के लिए आज बहुत सारे संस्थान प्रयास कर रहे हैं। कुछ धार्मिक और अध्यात्मिक संस्थान भी इस प्रयास में जुटे हैं। वे संस्कारवान शिक्षा देते हैं जो आगे चलकर समाज निर्माण में अहम भूमिका निभाती है।
महिलाएं अपने अधिकारों को समझे
अमूमन महिलाये खुद को निराश्रित समझती है। अपने पति या पिता पर निर्भर समझती है जो जरूरी नही है। महिलाएं चाहे तो वे शिक्षा काल से ही अपने अधिकारों को समझे और उन पर द्रढ़ रहे। अच्छा आचरण महिला अधिकारों को पाने में सम्बल प्रदान करेगा। महिलाएं ये सुनिश्चित करे की हमारे अधिकार किसी के द्वारा में दया में दी भीख नही है। अगर ये सोच रखेगी तो खुद को मजबूत कर पायेगी।
फर्ज निभाने का संकल्प ले
अगर कोई महिला ये संकल्प ले की अमुक के प्रति मेरा ये फर्ज बनता है। जब फर्ज याद रहेगा तो उसके अधिकार और ज्यादा मजबूत होंगे। उसे अपने पीहर,ससुराल,स्कूल,कोलेज और समाज में रहते समय क्या फर्ज बनते हैं इसका हमेशा ध्यान रखना होगा। तभी उसे ये आभास होगा की समाज में उसका क्या योगदान है और समाज में उसकी क्या भूमिका है।
जीवन की भूमिका तय करे महिलायें
अक्सर परिजन लडकी को शिक्षा दिलाते समय ओपचारिकता ही पूरी करते हैं। अगर लडकियों को ऐसा लगे तो उस पर गौर करनी चाहिए। इसका जिम्मेदार व्यक्ति कोन है उस पर गहराई से चिन्तन करना चाहिए। अगर खुद को कमजोरी महसूस हो तो मानस पटल को मजबूत कर हिम्मत जुटाए और कमियों की तलाश कर निर्णय लेने में सक्षम हों।
मन के भाव बताये बड़ो को
अक्सर देखा जाता है लडकियाँ पढने में,सामजिक कार्य,सांस्कृतिक कार्य,नव सृजन कार्य में तेज होती है। लेकिन वे अपने मन के भाव किसी समझदार को या बड़ों को बता नही पाती है। ऐसे में उसके विचार दब जाते हैं। उसके मन के भाव जब तक बंटेंगे नही तब तक किसी को योग्यता का पता नही चलेगा और वे मन के अंदर संकुचित होकर रह जायेंगे। इसके लिए जरूरी है सभी के साथ मित्रवत व्यवहार हो। ये ही वो रिश्ता है जिसमे सब उभडास बाहर निकल जाती है।
महिलाओ की हौंसला अफजाई भी जरूरी
ये बात तो सही है की महिलाएं जो कुछ भी करती है पुरुष से दो कदम आगे ही रहकर करती है। महिलाओं को समाज द्वारा संकुचित सोच का सामना करना पड़ता है। उनके लिए रास्ते होते हुए भी रिस्क बन जाते हैं। एक महिला का अगर पति और पिता हौंसला बढाये तो वो सबकुछ सम्भव है जो होना चाहिए। अक्सर देखा जाता है वे बच्चियां जो पारिवारिक सुपोर्ट के साथ आगे बढती है वो मानसिक,शारीरिक और सामाजिक सोच से विकसित हो जाती है। ये हौंसला अफजाई पारिवारिक,समाज और किसी सामाजिक संस्था के द्बारा सम्भव हो जाती है।
करियर का निर्धारण करे न की निरुदेश्य
अक्सर पढ़ाई का उदेश्य नौकरी समझ लिया जाता है। नेता गिरी का पद दबदबा समझ लिया जाता है। पुलिस का पद रॉब समझ लिया जाता है। जब भी हम अपने से निम्न की सोच को आगे बढ़ाते हुए देखेंगे तो पाएंगे कि हमे बिना कोई उदेश्य के वर्क नही करना चाहिए। हमारा उदेश्य हर सम्भव जागरूकता ही हो ना कि उससे फल की इच्छा प्राप्ति। जब हम जिस पद का उदेश्य समझ जायेंगे तो हम करियर का निर्धारण कर पाएंगे। अगर हमारी सोच में सेवा समाहित है तो हमारे उदेश्य भी पूर्ण होते हैं।
प्रमाण -पत्र
प्रमाणित किया जाता है ये विचार मेरे स्वरचित और अप्रकाशित हैं।
रामकरण पूनम प्रजापति
राजस्थान प्रभारी-रामेश्वरम ट्रस्ट
पत्रकार देनिक सीमांत रक्षक
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