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देश की हालत देख दिल ज़ार-ज़ार रोता है



"दोस्तों, एक शेर के साथ अपनी बात शुरू करना चाहता हूँ -

कुछ "कहना" चाहता है, मगर "कह नही" पाता है "राशिद" 
 "आज के "हिन्दुस्तां" की "हालत" देख "ज़ुबां" "खामोश",
 "आँख" "नम", और "दिल" "ज़ार-ज़ार" रोता है "राशिद"

"दोस्तों, आज एक ऐसा "हादसा" हमारे साथ हुआ जिसने हमे "सोचने" पर मजबूर कर दिया है। हुआ यूँ कि बीती शाम हम अपनी धर्मपत्नी व दोनों बेटों के साथ अपनी स्कूटी से मार्केट के लियें जा रहे थे, रास्ते मे मेन रोड पर जब हम चल रहे थे, तब एक "आज का युवा" इस "देश" का आने वाला "भविष्य" एक लड़का अपनी स्कूटी लेकर बहुत तेज़ी के साथ हमारे बिल्कुल बराबर से निकला, और निकलते हुए उसने गाड़ी लहराई, और हमारी स्कूटी की अगली साइड में "टक्कर मार दी, हमने बड़ी मुश्किल से गाड़ी को "कन्ट्रोल" किया, और अगर कंट्रोल नही कर पाते तो पीछे आ रही गाड़ियाँ हमें एक "यादगार" बना देतीं, हमने फ़ौरन उस लड़के को आवाज़ देकर रुकने को कहा, वो लड़का आवाज़ सुनकर पलटा, और उसी तेज़ी में वापस हमारे पास आया और हमसे "उलझने" लगा, कई लोग जमा हो गये, और वही सब "बहसबाज़ी" हुई जो ऐसे मामलों में होती है, मगर इसी "बहस" के दौरान उस लड़के ने एक बात ऐसी कही जो अभी तक हमारे ज़ेहन में "गूंज" रही है, उसने कहा - *अबे "मुल्ले" "इतने सारे लोग" लेकर "गाड़ी" पर "घूम" क्यूँ रहा है*?


जबकि गाड़ी पर हम हमारी वाइफ और दोनों बेटे ही थे, लेकिन उसके इस "वाक्य" का एक शब्द हमारे कानों में अभी तक "गूंज" रहा है - "मुल्ले", "मुल्ले" "मुल्ले" और इसी वाक्य को लेकर आज इस देश, और हमारे समाज के "ज़िम्मेदार" और "बुद्धिजीवी" वर्ग के लोगों के लियें कई तरह के सवाल ??? खड़े हो गये हैं, और वो सवाल ये हैं कि - 


1. क्या इस देश के होने वाले "भविष्य" इस देश के "युवा" की सोच इतनी "तुच्छ" कर दी गयी है कि वो लोगों को "जातिसूचक" शब्दों से पुकारे ? 


2. क्या अब इस देश मे "मुस्लिम समाज" के लिये एक "दलित एक्ट" जैसा "कानून" नही बनना चाहिये, जिसमे अगर कोई "जातिसूचक शब्द" का प्रयोग करता है तो उस पर "कार्यवाही" हो सके ? 


3. देश और समाज को "बांटने" वाली, एवं देश के युवाओं की सोच को "तुच्छ" करने वाली, व देश को "पतन" की ओर ले जाने वाली इस "बीमार मानसिकता" के लियें किसे "दोषी" क़रार दिया जाये ?


 4. उस व्यक्ति द्वारा हमें "जातिसूचक शब्द" कहने व "अपमानित" करने के लियें हमे किसके ख़िलाफ़ "रिपोर्ट करानी चाहिये ? इस देश पर "साम्प्रदायिकतावादी सोच" के साथ "राज" कर रही केंद्र व राज्य सरकारों पर ? ख़ुद उस व्यक्ति पर ? या उस भीड़ में शामिल रहे "तमाशाई" लोगों पर, ? जो उस बीमार मानसिकता वाले व्यक्ति की इस तरह की बात सुनने के बाद भी "ख़ामोश" रहे, किसी ने उसे नही टोका ? या फिर हमारे देश के "कानून" और "सिस्टम" पर हमें रिपोर्ट करनी चाहिये जो "अभिव्यक्ति की आज़ादी" के तहत किसी को भी कुछ भी कहने की "आज़ादी" देता है ?


 5. या फिर इस तरह की "बीमार मानसिकता" वाले लोगों की वजह से आने वाले समय मे हमें एक "गृहयुद्ध" के लिये "तैयार" हो जाना चाहिये ?
दोस्तों, जो कुछ भी हो लेकिन इस तरह की मानसिकता देश और समाज के लिये बेहद "घातक" है, व देश और समाज को "पतन" की तरफ़ ही ले जाती है। और इसके लियें पूरी तरह से "ज़िम्मेदार" आज इस "देश" मे "राज" कर रही "साम्प्रदायिकतावादी सरकारें" हैं जिन्होंने आज इस देश के आने वाले "भविष्य" इस देश के "युवाओं" में इस तरह की "सोच" का "संचार" किया है, व "धर्म" और "जातिवादी" की "राजनीति" को "चिंगारी" दे-देकर उसे एक "भंयकर आग" का रूप दे दिया है, हमें ये फिक्र है कि इस आग की "लपटों" में हमारा ये "गंगा-जमुनी तहज़ीब" वाला देश कहीं "झुलस" ना जाये ?? और इस देश का "मुस्तक़बिल" कहीं "ख़तरे" में ना पड़ जाये, इन सभी सवालों के बारे में गंभीरता से सोचकर, अपनी राय ज़रूर रखें, क्योंकि ये आपकी और हमारी ही "ज़िम्मेदारी" है कि इस देश को "पतन" की ओर जाने से बचायें, व "सदियों" से चली आ रही इस "जाति-धर्म" और "रूढ़िवादी मानसिकता" को ख़त्म करके अपना एक "स्वच्छ मानसिकता" वाला देश बनायें।।।

लेखक - राशिद सैफ़ी "आप" मुरादाबाद

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