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राजस्थान : कभी तुम आगे तो कभी हम आगे,अब ये लो तुम्हे पछाड़ हम फिर आ गए आगे....


कुलदीप शर्मा की कलम से
राजस्थान । प्रदेश में जब से  लोकपरिवहन का संचालन हुआ है विवादों में ही रहा हैं ! मामला प्रदेश से जुड़ा हुआ है तो जाहिर सी बात हैं राजस्थान सीएम पर भी अंगुली उठना लाजमी ही हैं ! लोक परिवहन संचालन के बाद से ही अभी तक विवादों से पीछा छूटा नहीं पाई हैं !

पकड़म-पकड़ाई खेलती बसे
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आपने बचपन मे इस अनूठे खैल का नाम तो सुना ही होगा कि 'पकड़म-पकड़ाई' खेलते हैं । इस खैल में बच्चे एक दूसरे से तेज़ दौड़ने,पकड़ने व धक्का देने का काम करते हैं । अब जरा यहां भी कुछ ऐसे ही चल रहा हैं ! लोकपरिवहन व रोडवेज में हर रोज सवारियों को लेकर 'पकड़म-पकड़ाई' का खैल चलता हैं जो कि सीधे-साधे देखा जाए तो राहगीरों व सवारियों की जान के साथ खिलवाड़ किया जाता हैं !

प्रतीकात्मक फोटो

कभी तुम आगे तो कभी हम आगे
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सरकारी व निजी बसों में जल्दी पहुंचने व सवारियों को लेकर हड़बड़ी मची रहती हैं ! जिसके चलते प्रदेश भर में काफी छोटे-बड़े हादसे हर रोज होते रहते हैं ! लेकिन सरकार व सरकारी अमला इस पर कोई कार्रवाई करने को तैयार नज़र नहीं आता हैं ! 

हवा से बाते करती बसे
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जब सड़को पर लोक परिवहन की बसे हम चलते देखते हैं तो ये सीधी हवा से बाते करती ही देखी जा सकती हैं ! जब लोक परिवहन रास्ते पर होती हैं तो ना कोई साधन उनसे आगे जाता हैं और ना ही कोई ओवरटेक कर पाता हैं ! सैंकड़ो किलोमीटर की दूरी चंद घण्टो में पूरी करवाने का दावा करते भी देखे जा सकते हैं...!!


प्रतिस्पर्धा रोडवेज व लोकपरिवहन की ! लेकिन सवारियों की जान से खिलवाड़ क्यों...?
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जब हम बात करे कि लोक परिवहन व रोडवेज की आपसी प्रतिद्वंद्वीता में आम राहगीरों व सवारियों का क्या दोष जो अपने-अपने घरों से किसी काम से निकले हैं ! जानकारों की माने तो रोड़ पर दोनों बसों की इतनी खींचातान चलती हैं कि काफी बार बसे आपस मे टकराती-टकराती रह जाती हैं ! अब बात समझ से परे हैं कि जब सवारियां ही भरनी हैं व रास्ते पर ही चलना हैं तो नियमो-कायदों व स्पीड पर तो ध्यान देवे....!

सब नींद में मस्त,महज़ चालान...!कार्रवाई कौन करे
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ऐसी कोई बात नहीं हैं कि बात आप तक या हमारे तक सीमित हैं जाहिर सी बात हैं इन चीज़ों का सरकार व सरकारी अमले को भी पता है लेकिन कार्रवाई के नाम पर महज चालान या चेकिंग से खानापूर्ति कर दी जाती हैं...! लेकिन किसी को कोई परवाह नज़र नहीं आती हैं !

बड़े हादसों के बाद जागती सरकार व प्रशासन लेकिन बाद में सब मस्त...
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जब भी कोई प्रदेश या जिले में कोई बड़ा हादसा होता हैं तो एक बारगी तो सभी जाग जाते हैं । धड़ा-धड़ कार्रवाइयों का सिलसिला जारी होता हैं लेकिन बाद में कुछ समय बीत जाने के समय उपरांत 'ढाक के तीन पात' वाली बात चरितार्थ हो जाती हैं । अब सवाल ये हैं कि आखिर पहल कौन करे ताकि सवारियों व राहगीरों की जान से खिलवाड़ बन्द हो जाये.....


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