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राजस्थान: आखिर कितने मोर्चों पर लड़ेंगी राजस्थान की सीएम वसुंधरा राजे!डाॅक्टर, पुलिस, पत्रकार, सरकारी कर्मचारी, व्यापारी, गुर्जर, राजपूत आदि सब नाराज..



5 नवम्बर की रात तक कोई फैसला नहीं हुआ तो राजस्थान के दस हजार सेवारत डाॅक्टर 6 नवम्बर से सरकारी अस्पतालों में काम करना बंद कर देंगे। डाॅक्टरों ने अपने इस्तीफे सौंप दिए हैं। जब पूरे प्रदेश में मौसमी बीमारियों खासकर डेंगू और स्वाइन फ्लू का कहर है, तब दस हजार सरकारी डाॅक्टरों के काम नहीं करने का कितना असर होगा, इसका अंदाजा लगाया  जा सकता है।


सातवें वेतन आयोग की विसंगतियों को लेकर लाखों राज्य कर्मचारी पहले से ही सरकार के पुतले जला रहे हैं। वेतनमान में कटौती को लेकर प्रदेश भर के पुलिस जवानों ने मैस का बेमियादी बहिष्कार कर रखा है। भ्रष्टाचारियों को बचाने और मीडिया को फंसाने वाले बिल को लेकर राजस्थान भर के पत्रकारों में सरकार के प्रति गुस्सा है। राजस्थान के सबसे बड़े समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका ने तो मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की खबरों के बहिष्कार की ही घोषणा कर दी है। जीएसटी और नोटबंदी की वजह से बाजार में मंदी का जो दौर चल रहा है उससे व्यापारी भी परेशान हैं।


 पांच प्रतिशत विशेष आरक्षण नहीं मिलने से गुर्जर समाज में उबाल है तो आनंदपाल और पद्मावती फिल्म को लेकर राजस्थान के राजपूत समाज ने सरकार के सामने तलवारें खड़ी कर दी हंै। यानि इन दिनों राजस्थान की भाजपा सरकार चारों तरफ से घिरी हुई है। इसलिए यह सवाल उठा है कि आखिर सीएम वसुंधरा राजे कितने मोर्चों पर लड़ेंगी। इतने विरोधों के बीच दो लोकसभा और एक विधानसभा के उपचुनाव का भी सामना करना है। असल में इन हालातों को उत्पन्न करने में उन लोगों का योगदान है जो सीएम के इर्द-गिर्द जमा हंै।


सीएम माने या नहीं, लेकिन इर्द-गिर्द जमा लोग हकीकत से रूबरू होने ही नहीं देते। ऐसे लोग सिर्फ अपने स्वार्थों के खातिर हालात को बिगाड़ते जा रहे हैं। कालीचरण सराफ जब से चिकित्सा मंत्री बने हैं तब से हालात बेहद खराब हुए हैं। चिकित्सकों के सामूहिक इस्तीफे के पीछे सराफ की अदूरदर्शिता सामने आई है। ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार के मंत्री भी विवादों को सुलझाने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं। यही वजह है कि सारा बोझ सीएम राजे पर आ पड़ा है। अब देखना है कि सीएम इन हालातों से कैसे निपटती हैं।


सीएम को चाहिए कि सबसे पहले इर्द-गिर्द जमा लोगों को हटाएं और ऐसे लोगों को लगाएं जो जमीनी हकीकत के बारे में बता  सकंे। सरकार को अगले वर्ष ही विधानसभा के चुनावों का सामना करना है। ऐसे में यदि हालात नहीं सुधारे तो भाजपा को भारी खामियाजा भुगतना पड़ेगा।


सोर्स:(तेज न्यूज़24 व्हाट्सएप्प ग्रुप :एस.पी.मित्तल)

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