श्रीगंगानगर।[गोविंद गोयल] शहर के बीच कोतवाली के निकट मुख्य बाजार मेँ एक ही रात 6 दुकानों मेँ एक साथ चोरी हुई। उसी रात एक बैंक के एटीएम को तोड़ने की कोशिश चोरों ने की। उसके बाद दुर्गा मंदिर चोर गल्ले तोड़ नकदी ले गए। बुजुर्ग महिला की बाली छीनी गई। इतनी घटनाओं के बावजूद शहर मेँ कहीं कोई प्रतिक्रिया नहीं। बस,सदर बाजार वालों ने ज्ञापन जरूर दिया। बाजार बंद कर लेंगे। इनके अतिरिक्त पूरा शहर खामोश है। दर्जनों व्यापारी संगठन हैं, कहीं से कोई आवाज नहीं। अनेकानेक सामाजिक संगठन है, सब चुप। ईश्वर की कृपा से तमाम जन प्रतिनिधि भी कुशल से हैं, मगर उनकी जुबां भी बंद की बंद है। सत्ता पक्ष नींद मेँ है और विपक्ष पता नहीं किधर है। यूं भी कह सकते हैं कि सत्ता वाले गुरूर मेँ है और विपक्ष आने वाली सत्ता के सुरूर मेँ।
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फोटो उस वक्त का है जब व्यापारी नेता एसपी को अमन चैन के लिए थैंक्स करने गए थे |
जनता को इन सबसे कोई लेना देना कभी रहा ही नहीं। इस मुरदापन की वजह से प्रशासन बेफिक्र है। वह जानता है कि इस शहर मेँ कुछ भी हो जाए, कोई बोलेगा नहीं। कोई हल्ला नहीं होगा। हां, इन घटनाओं को नजरअंदाज कर नेताओं से लेकर व्यापारी नेताओं तक की हाजिरी उनकी कोठियों मेँ लगती रहेगी। पीड़ित व्यक्ति ही ठीक से नहीं रोता तो कोई दूसरा भी क्या करे! लीडरशिप के नाम पर शून्य हो चुके इस गंगानगर मेँ इस प्रकार की घटनाओं से आम आदमी को चिंता मेँ डाल दिया है। इधर उधर जाने से पहले कई बार सोचता है। घरों मेँ महिलाओं का अकेला रहना सौ आशंकाओं को जन्म देने लगा है।
चार माह मेँ देव उठ जाते हैं, लेकिन इस शहर का मुरदापन कब खत्म होगा, कोई नहीं जानता। कोई किसी जिम्मेदार व्यक्ति से सवाल ही नहीं करता! 4 सितंबर को श्रीगंगानगर चेम्बर ऑफ कॉमर्स के संरक्षक जयदीप बिहाणी के नेतृत्व मेँ बड़ी संख्या मेँ व्यापारी पुलिस का हौसला बढ़ाने,मनोबल बनाए रखने के लिए एसपी से मिले। 7 सितंबर को संयुक्त व्यापार मण्डल के संरक्षक किशन मील के साथ अनेक पदाधिकारियों ने एसपी से मुलाक़ात कर उनको कानून व्यवस्था सही रखने के लिए थैंक्स किया। जब ऐसे ऐसे नेता, शहर के बड़े व्यक्ति पुलिस का मनोबल बढ़ाने के वास्ते एसपी के साथ खड़े हो सकते हैं। उनको उनकी ड्यूटी ठीक से करने पर शुक्रिया करने के लिए उनके ऑफिस जा सकते हैं तो फिर इन सबको शहर की जनता के साथ आकर खड़े होने मेँ शर्म क्यों आती है!
अच्छे काम के लिए पीठ थपथपाई ठीक, किन्तु जो कुछ हो रहा है, उस बारे मेँ बात करने के लिए उनके पास जाने मेँ झिझक क्यों! जिस देव के ये सब वार-त्योहार धोक लगाते हैं। दंडवत करते हैं, उसे अपनी पीड़ा बताने मेँ संकोच किस बात का! इतने बड़े बड़े आदमी इन सबसे डरते क्यों हैं! बड़ी बड़ी बात करने वाले छोटे छोटे मुद्दों पर अधिकारियों से आँख से आँख मिला बात करने से बचते क्यों हैं! शहर के स्वाभिमान की बात है। हमारी सुरक्षा का मसला है। कानून व्यवस्था का मुद्दा है। ऐसा मुरदापन और चापलूसी की आदत किस काम कि जो हमें सुकून से जीने का अधिकार ही ना दे सके ।
वो नेता किस काम के जो ऐसे मौके पर एसपी-कलक्टर को उनकी ज़िम्मेदारी का अहसास ही ना करवा सकें! माना कि अधिकारियों से तू तड़ाक करने की क्षमता अब नेताओं मेँ नहीं रही, किन्तु जनता के लिए उनसे हाथ जोड़ कर निवेदन करने मेँ तो कुछ नहीं जाता। जितने भी नेता विधानसभा चुनाव के लिए लाइन मेँ लगे हैं, उनमें से किसी मेँ है इतनी हिम्मत, काबिलियत कि वह जनता के साथ खड़े हों एसपी से इन आपराधिक घटनाओं के लिए सवाल जवाब कर सकें! ये भी क्या करें, जनता भी तो कहां है! इसमें कोई शक नहीं कि एसपी का घटनाओं पर कभी कोई बस नहीं होता।
परंतु कोई ऐसा इंतजाम तो हो जिससे जनता को तसल्ली मिले। अपराधियों मेँ डर रहे। गंगानगर मेँ तो ये संभव ही नहीं लगता। क्योंकि ये शहर मुरदों का है। मुरदे ही नेता है और मुरदे ही जन प्रतिनिधि। उनके लिए कुछ करने की जरूरत ही नहीं। कभी कोई एक घटना से कुछ लोगों के जिंदा होने का अहसास होता है। उसके बाद फिर वही नींद। मुकम्मल नींद।
दो लाइन पढ़ो-
अफसर सारे मौज में भैया नहीं नगर का ज्ञान
कोई लुटे चाहे कोई पिटे जी उनको क्या श्रीमान।
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