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दो जनों की आपसी लड़ाई ने लगा दिया शहरी विकास पर ग्रहण


हनुमानगढ़ में इन दिनों जो हो रहा हैं वो शहर के लिए कुछ ठीक नज़र नहीं आ रहा हैं। शहर के विकास को लेकर वेसे भी नगरपरिषद मन्दी की मार झेले हुए हैं लेकिन दूसरी तरफ हर रोज  आयुक्त की कुर्सी के लिए हो रहे नाटकीय खैल से शहर को फायदे की उम्मीद कम व नुकसान की उम्मीदे ज्यादा नज़र आ रही हैं। अगर किसी दो प्रतिष्ठित व्यक्तियों की आपसी लड़ाई में शहर के लोगो के साथ जो नाइंसाफी हो रही हैं वो ठीक नहीं हैं। शहर के लोग इन सभी चीज़ों को बड़े ही आराम से देख रहे हैं। इस पूरे मामले पर अगर गौर किया जाए तो किसी ना किसी रूप में मंत्री महोदय की भी हार सामने नज़र आ रही हैं। 







अब जब इतना कुछ शहर में घटित हो रहा हैं और आमजन को विकास के कार्यो में देरी का सामना करना पड़ रहा हैं इसके बावजूद भी शहर के जिम्मेदार मंत्री का यूँ शांति से सब कुछ देखना शायद काफी सवाल खड़ा कर रहा हैं। अब तो मंत्री महोदय को ही बीच मे आकर इस मामले को सुलझाने का प्रयास करना चाहिए ताकि शहर की जनता का समय पर कार्य व भला हो सके। प्रतिष्ठित व्यक्तियों में शुमार कहे जाने वाले जाने-माने व्यक्ति द्वारा इस प्रकार का खैल खेलते रहना भी सवाल खड़े करता हैं। अगर उन महोदय जी की प्रतिष्ठा व मान-सम्मान की बात करे तो कुछ कम नहीं हैं लेकिन शायद अब उन्हें भी शहरवासियों के लिए सोचने की जरूरत हैं ताकि इस खैल पर विराम लगाया जा सके। शहर विकास व सामाजिक कार्यो में उनके योगदान का काफी लंबा-चौड़ा उदारहण मौजूद हैं।







 आज फिर से शायद उन्हें जनता के लिए सोचकर इस कसमकस के रस्से को अपनी तरफ से छोड़ देना चाहिए। हम ये भी नहीं कहते कि आप गलत कर रहे हो लेकिन अभी हनुमानगढ़ में आयुक्त की बार-बार कुर्सी खाली होने से शहरवासियों के कार्यो में देरी हो रही हैं। सबसे बड़ी बात तो ये हैं कि शहर में भाजपा के मंत्री हैं तो वहीं भाजपा के ही सभापति नगरपरिषद में हैं वो भी इस पूरी कहानी को खत्म नहीं करवा पा रहे हैं। जरा ध्यान देवे व जनता के विकास में बार-बार रोड़ा ना आये उसके लिए प्रयास करना भी आपकी महानता को जरूर दर्शायेगा। अब जब शहर के जाने-माने प्रतिष्ठित व्यक्ति ही शहर का बेड़ा गर्क करवाने में लगे हुए है तो बाकियो से क्या उम्मीद लगाई जा सकती हैं। नगरपरिषद आयुक्त की कुर्सी के लिए लगातार युद्ध हो रहा हैं लेकिन कोई कुछ कहने व बोलने को तैयार नहीं हैं। 






राजस्थान जोधपुर उच्च न्यायलय में आयुक्त की कुर्सी को लेकर चल रहे इस खेल में जनता पीस रही हैं लेकिन किसी भी महाशय को कोई फर्क नहीं पड़ता हैं कि शहर वासी व नगरपरिषद कार्य इस दौरान कितने प्रभावित हो रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल तो ये हैं कि जिस आयुक्त की कुर्सी को बार-बार लेखाधिकारी की पोस्ट दिखा कर हाई कोर्ट से स्थगन आदेश लाये जा रहे हैं क्या उस व्यक्ति को ये नहीं पता कि आज तक इस कुर्सी पर बैठे थे या जो इस कुर्सी से कार्य करते आये थे वो सभी आयुक्त की योग्यता रखते थे। अगर रखते थे तो भी मान लेते हैं कुछ ठीक ही होगा! लेकिन अगर ऐसा नहीं था तो पहले इस प्रकार का खेल क्यों नहीं खेला गया था! क्या उस वक़्त आयुक्त की कुर्सी पर कोई भी काबिज होकर कार्य कर सकता था। इस खेल से वो सभी जिम्मेदार नेता व जागरूक आमजन मुंह क्यों फेर रहे हैं। अगर शहर को यूं ही नरक ही बनवाना हैं तो आराम से बैठिये व राम-नाम का भजन करिये ताकि शहर को बर्बाद होते हुए अपनी आंखों से देख सके। 







शहर में अपने आप को बड़ा नेता व प्रतिष्ठित कहने वालों लोगो मे ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं हैं जो इस मामले में दोनो पक्ष से वार्ता करके इस पूरे मसले को सुलझा सकता हैं। अगर हैं तो फिर सामने आकर इस खेल को खत्म करवाये क्यों आमजन के विकास व दिमाग पर इतना रोड़ा बनने दिया जा रहा हैं। खैर आमजन से लेकर नेताओं व जागरूक प्रतिष्ठित व्यक्तियों तक ये बात कब पहुंचेगी ओर वो कब तक जांगेंगे ये तो नहीं पता लेकिन ये जो सब घटित हो रहा हैं वो हमारे शहर के लिए शर्मनाक स्थिति बना रहा हैं। अब आप जिले भर में सरेआम हो रहे नशे सप्लाई को ही ले लो, यॉर्कर समाचार पत्र पिछले काफी समय से शहर से लेकर जिले भर में फैल रहे नशे के मकड़जाल पर लिखता व छापता आ रहा हैं लेकिन किसी भी नेता,प्रतिष्ठित व्यक्ति व जागरूक जनता की आवाज घर से बाहर तक नहीं आई! हाँ ये अलग बात हैं कि कुछ एक युवाओ व व्यक्तियों ने खुलकर विरोध जाहिर किया हैं। लेकिन क्या बाकी सभी को उस दिन का इंतज़ार हैं जिस दिन हर व्यक्ति के घर एक नशेड़ी पैदा होगा। 








खैर आमजन को जागरूक माना जाता आया हैं। बिल्कुल जनता की एकता में ताकत होती हैं लेकिन ये ताक़त कब एक निश्चय बनकर अनेको के रूप में सड़क पर उतरेगी ये अभी देखने वाली बात रहेगी। शहर में इन दिनों जैसे लोग गहरी नींद में सो रहे है वो अपने आप मे बहुत ही बड़ी दुर्भाग्य की बात हैं कि शहर में लाखों लोग निवास करते हैं लेकिन अपने ही हक़ के लिए नहीं संघर्ष कर पाना शायद जनता के इस लोकतंत्र को कमजोर अंकाने पर मजबूर कर रहा हैं। अब इस शहर में जिस प्रकार एक आयुक्त की कुर्सी को लेकर कसमकस चल रही हैं वो बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण हैं। लेकिन अब उन व्यक्तियों के जागने का इंतज़ार हैं जो शहर के लोगो की भावनाओ को समझते हुए शहर में हो रहे इस खेल को रोक सके। 



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