नई दिल्ली(जी.एन.एस) . अबोध बच्चों की कस्टडी पर मां का पहला हक मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों की कस्टडी लेने के लिए मां केखिलाफ उसकेपति द्वारा दायर हैबियस कॉरपस (बंदी प्रत्यक्षीकरण) याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। याचिका दायर करने वाले इस अफगानी नागरिक का कहना था कि टूरिस्ट वीजा पर परिवार समेत भारत आने केबाद उसकी पत्नी दोनों बच्चों को लेकर उसे छोड़कर चली गई। ऐसा उसने एक व्यक्ति के बहकावे पर किया। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने याचिकाकर्ता अफगान नागरिक हबीब उल्लाह शाइदा को फैमली कोर्ट में जाने के लिए कहा है।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील सुलेमान एम खान ने पीठ से कहा कि दिल्ली हाईकोर्ट ने इस आधार पर उसकी याचिका खारिज कर दी कि बच्चों अपने पिता से मिलने को इच्छुक नहीं हैं। पीठ ने याचिकाकर्ता केवकील से कहा कि जब नाबालिग बच्चे पास केपास हैं तो हम हैबियस कॉरपस याचिका नहीं स्वीकार कर सकते। याचिकाकर्ता केवकील खान ने यह दावा कि उसके मुवक्किल की पत्नी अनपढ़ है और विदेशी सरजमीं पर हैं और वह भी दो नाबालिग बच्चों (नौ और चार वर्ष) के साथ।
न ही उसकेपास आमदनी का कोइ नियमित स्रोत है और वह भारत में रिफ्यूजी की तरह रह रही है। इस कारण बच्चों को अच्छी शिक्षा भी नहीं मिल पा रही है। उन्होंने कहा कि बच्चों के हितों केमद्देनजर यह बेहतर होगा कि इन तमाम मसलों का निपटारा उनकेअपने देश अफगानिस्तान की अदालत द्वारा किया जाए। उन्होंने पीठ ने पुरजोर गुजारिश की इस याचिका पर विचार किया जाए क्योंकि विदेशी नागरिकों का भी मानवाधिकार होता है। लेकिन पीठ ने याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए याचिकाकर्ता को फैमली कोर्ट में जाने केलिए कहा है।
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