माओवादी रुपयों की बड़ी खेप छिपाने के लिए पारंपरिक तरीके ही अपना रहे हैं। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की जांच में पता चला है कि माओवादी करंसी को ठूंस-ठूंस कर पॉलिथीन में भरते हैं और कई पॉलिथीन से उसे लपेट देते हैं। इसके बाद कैश को लोहे के बक्शे आदि में डालकर सुदूर जंगली इलाकों में गड्ढे खोदकर छिपा दिया जाता है।
6 महीने लंबी चली NIA जांच में हिंसक लेफ्ट विंग इक्स्ट्रीमिज्म (LWE) से प्रभावित 90 जिलों में माओवादी फंडिग ऑपरेशंस के बारे में कई अहम सुराग मिले हैं। एजेंसी को यह भी पता चला है कि माओवादी रियल एस्टेट, बहुमूल्य धातु (सोना या चांदी) और बिजनस में निवेश करते हैं। टॉप लीडर्स के बच्चों की पढ़ाई पर भी काफी खर्च किया जाता है।
माना जा रहा है कि एनआईए जांच से माओवादी लीडर्स, उनके शुभचिंतकों, फंड मैनेजरों और उनसे संबद्ध कारोबारियों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की जमीन तैयार हो गई है। पिछले कई महीनों से LWE टेरर फंडिंग के 10 मामलों की जांच भी चल रही है और अबतक कई लोगों से पूछताछ हो चुकी है। कई एजेंसियों के अनुमान के मुताबिक माओवादियों को हर साल करीब 100 से 120 करोड़ रुपये की फंडिंग होती है। NIA अब भी इसका सही-सही अनुमान लगाने की कोशिश कर रही है। फंडिंग की मोटी रकम को माओवादी कई तरीके से ठिकाने लगाते हैं।
हर साल पैसे जुटाने के आंकड़े अलग-अलग हैं। 2007 में गिरफ्तार CPI-माओवादी पोलितब्यूरो के सदस्य ने बताया था कि 2007-09 के लिए उनका बजट 60 करोड़ था। 2009 में गिरफ्तार एक अन्य ने इसे 15-20 करोड़ बताया था। उसी साल छत्तीसगढ़ के तत्कालीन DGP ने कहा कि माओवादी देशभर में जबरन वसूली कर एक साल में 2,000 करोड़ रुपये जुटा लेते हैं। राज्य के सीएम ने उनका बजट 1,000 करोड़ बताया था। 2010 में पूर्व विदेश सचिव जीके पिल्लई ने माओवादियों की सालाना इनकम 1400 करोड़ रुपये बताई थी। एक अनुमान के मुताबिक हर साल माओवादियों को 100 से 120 करोड़ की फंडिंग होती है।
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