केरल के सबरीमाला मंदिर में सभी आयु की महिलाओं के प्रवेश का रास्ता सुप्रीम कोर्ट ने खोल दिया। मंदिर प्रबंधको द्वारा नियम बनाया गया था की 10 से लेकर 50 वर्ष की आयु की महिलाओ को (माहवारी समय) प्रवेश नहीं मिलेंगा। बरसोंसे ये नियम था और कई महिला संगठनों द्वारा इसे महिला समान अधिकार के खिलाफ बताकर कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। जिसके ऐतिहासिक फैंसले में सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर के नियम को गलत बताकर सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश देने का आदेश दिया था। उस वक्त तो संघ परिवार और भाजपा ने कुछ नहीं कहा। लेकिन अब दोनों खुल कर सुप्रीम कोर्ट के फैंसले को गलत बता कर उसका विरोध कर रहे है और केरल में फैंसले के खिलाफ पदयात्रा शुरू की है। हो सकता है की स्थानीय राजनीति को लेकर भाजपा और आरएसएस ऐसा कर रहे हो. लेकिन उससे महिलाओ को नुकशान है।
भाजपा एक और तो महिलाओ के समान अधिकार की दुहाई देता है, संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण पर जोर देते है, महिलाओ को भी पुरुष के बराबरी का वेतन की मांग करते है। लेकिन जब देश में महिलाओ के प्रति एक नया इतिहास लिखा जा रहा है तब भाजपा पार्टी अपने तुच्छ राजनितिक स्वार्थ के लिए देश की सभी महिलाओ का घोर अपमान कर रही है। आयेदिन भाजपा के कई नेताओं के मुख से सुनने को मिलता है की हम अदालत का सन्मान करते है, अदालत के सभी फैंसलो का स्वीकार करते है लेकिन सबरीमाला मंदिर में सभी आयु की महिलाओ के प्रवेश के फैंसले का कडा विरोध जता कर केरल में उलटी गंगा बहा रहे है। केरल सरकार ने माना की कोर्ट का फैंसला सही है और सभी महिलाओ को भगवान अय्प्पन के मंदीर में प्रवेश मिलना चाहिए। केरल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैंसले को चुनौती देने से मना कर महिलाओं के समान अधिकार की बात को समर्थन दिया। जब की भाजपा और आरएसएस महिला विरोधी बन रहे है। भाजपा और संघ परिवार भी मंदिर के नियमो को सही मानते हुए मान रहे है की माहवारी समय के दौरान महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश नहीं देना चाहिए।
संघ परिवार में महिलाओ को कोर कमिटी में या उच्च पदों पर स्थान नहीं मिलता ऐसी टिपण्णी जब कोंग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने की थी तब उसका कड़ा विरोध किया गया संघ परिवार की और से। लेकिन आरएसएस सबरीमाला नियम को लेकर राहुल को सही ठहराने की कोशिश में है की संघ में महिलाओं को कोई स्थान नहीं। संघ से ज्यादा भाजपा और उनके बडबोले नेतागण भी जिम्मेवार है। केरल की महिलाओ के वोट लेने की कोशिश में भाजपा भारत की आधी आबादी के साथ घोर अन्याय कर रही है। भाजपा की यह दोहरी निति महिलाओं के लिए घातक है। ये सत्ता की राजनीति में महिलाओं के अधिकारों को कुचलने के समान है। भाजपा की महिला नेतागण सुषमा स्वराज, स्मृति इरानी, वसुंधरा राजे, आनंदीबेन पटेल इस बारे में कुछ बोलेंगे ऐसी आशा रखना कितना सही होंगा? पद के सामने महिलाओ के समान अधिकार की कोई औकात नहीं। पद सलामत तो सब सलामत, महिला अधिकार जाए भाड में…!
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