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लगातार लुढ़क रहे रुपये को बचाने में जुटी सरकार और RBI


नई दिल्ली(जी.एन.एस) डॉलर के मुकाबले रुपए की लगातार गिरावट ने रिजर्व बैंक सहित सरकार की भी चिंताएं बढ़ा दी हैं। बुधवार को डॉलर के मुकाबले रुपया 72.91 के स्तर पर कारोबार कर रहा है। बीते कई महीनों से भारतीय करंसी ने गिरावट के नए रिकॉर्ड बनाए हैं और फिलहाल यह अपने सबसे निचले स्तर पर है।

एक्सपोर्ट के गति न पकड़ने के चलते हम बहुत ज्यादा डॉलर नहीं कमा पा रहे हैं। लेकिन कच्चे तेल का इंपोर्ट बढ़ने की वजह से हमें अधिक डॉलर चुकाने पड़ रहे हैं। क्रूड का इंपोर्ट बिल एक साल में 76 प्रतिशत तक बढ़ गया है, इसलिए इंपोर्ट और एक्सपोर्ट के बीच का अंतर यानी चालू खाता घाटा 5 साल के उच्चतम स्तर पर है। आर.बी.आई. के पास फिलहाल बड़े पैमाने पर डॉलर हैं लेकिन रुपए की गिरावट को रोकने का असर विदेशी मुद्रा भंडार पर पड़ रहा है। अप्रैल में यह 426 अरब डॉलर था, जो अब घटकर 400 अरब डॉलर ही रह गया है
एन.आर.आई. की ओर से जमा कराई गई विदेशी मुद्रा को अब तक 3 बार (1998, 2000 और 2013) आर.बी.आई. ने अपने रिजर्व में इजाफा करने के लिए इस्तेमाल किया है। पहली बार पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद ऐसा किया गया, जब 5 अरब डॉलर जुटाने पड़े। 2013 में आर.बी.आई. ने डिपॉजिट स्कीम में छूट के जरिए 34 अरब डॉलर जुटाए थे ताकि रुपए को रिकॉर्ड गिरावट के स्तर से ऊपर ले जाया जा सके। रिपोर्ट्स के मुताबिक अब एक बार फिर से सरकार इस विकल्प पर विचार कर रही है। इसके जरिए सरकार 60 अरब डॉलर जुटा सकती है।

सच्चाई यह है कि एन.आई.आइज की ओर से डॉलर के रूप में भारत में रकम जमा कराने की वजह सिर्फ राष्ट्रवाद नहीं है बल्कि अधिक ब्याज का लालच भी है। पूर्व में भी रिजर्व बैंक और सरकार ने डॉलर जुटाने के लिए अधिक ब्याज का ऑफर दिया था। इस बार भी ऐसा ही किया जा सकता है। केन्द्र सरकार पैट्रोल और डीजल पर फिलहाल टैक्स में कटौती शायद ही करेगी। इसकी वजह रुपया ही है। यदि ऑयल टैक्स में सरकार कटौती करती है तो उससे राजकोषीय घाटा बढ़ेगा। ऐसा हुआ तो सरकार को बांड जारी करने पड़ेंगे और इससे रुपया और कमजोर हो सकता है।

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