आम जन जीवन व पशु पक्षियों का गर्मी से बचाव जरूरी
श्रीगंगानगर, 31 मई। जिला कलक्टर श्री शिवप्रसाद मदन नकाते ने वर्तमान में भीषण गर्मी को देखते हुए आमजन जीवन व पशु पक्षियों के बचाव के लिए संबंधित विभागों को आवश्यक निर्देश दिए है।
जिला कलक्टर ने चिकित्सा एवं सवास्थ्य विभाग को निर्देश दिए है कि जिले के सभी चिकित्सालयों में लू ताप का अलग से वार्ड संचालित किया जाए। वार्ड में पंखों व कूलर की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए। सभी चिकित्सालयों में लू जाप से संबंधित दवाएं पर्याप्त होनी चाहिए। उन्होने चिकित्सा विभाग को निर्देश दिए है कि आमजन को लू ताप से बचाव की जानकारियां दी जाए।
इसी सन्दर्भ में चिकित्सा विभाग ने आमजन से अनुरोध किया है कि भीषण गर्मी में कम से कम परिवहन करे। इसी किसी कार्य के लिए गर्मी में निकलना हो तो सर को कपडे से ढक कर रखे। खाली पेट घर से नही निकले थोडी-थोडी देर में पानी पीते रहे घरों में भी लू से बचाव के लिए टाट या पल्लियां इत्यादि लगाकर लू से बचाव किया जा सकता है। घरों में क्लोरीनयुक्त या उबला हुआ पानी ठंडा कर उपयोग में ले। खाने में अधिक तेल युक्त खाद्य पदार्थो का सेवन कम करे।
पशु पक्षियों के बअचाव के निर्देश
जिला कलक्टर श्री नकाते ने वन विभाग तथा पशु पालन विभाग को निर्देश दिए है कि भीषण गर्मी में पक्षियों की सुरक्षा के लिए जगह-जगह परिन्डे लगावाए जाए। इस कार्य में आमजन व सामाजिक संगठनों का भी सहयोग लिया जा सकता है। पशु पालन विभाग भी क्षेत्रा में जहां-जहां पशुओं के पानी पीने की खरल बनी है उनमें भी पानी डलवाया जाए। भीषण गर्मी में पशुओं को बचाने के लिए विभिन्न प्रकार की सावधानियां पशु पालको को बताई जाए तथा पशुओं से संबंधित दवाओं का पर्याप्त स्टॉक उपलब्ध होना चाहिए।
लू तापघात से बचाव
लू- ताप घात से न केवल अपना बल्कि अपने परिजनों, बच्चों, बुजुर्गों आदि का भी बचाव करें। इस गर्मी के प्रकोप में लू से कोई भी प्रभावित हो सकता है लेकिन बच्चे, गर्भवती महिलाएं, श्रमिक, यात्रा, खिलाड़ी आदि ज्यादा प्रभावित होते हैं।
लू तापघात के लक्षण
शरीर मे लवण एव पानी अपर्याप्त होने पर विषम गर्म वातावरण में लू व ताप घात के लक्षणों के तहत सिर का भारीपन एवं सिरदर्द, अधिक प्यास लगना एवं शरीर मे भारीपन के साथ थकावट। जी मचलना, सिर चकराना व शरीर का तापमान बढना, शरीर का तापमान अत्यधिक (105 एफ या अधिक ) हो जाना व पसीना आना बन्द होना, मुंह का लाल हो जाना व त्वचा का सूखा होना, अत्यधिक प्यास का लगना बेहोशी जैसी स्थिति का होना, बेहोश हो जाना, प्राथमिक उपचार व समुचित उपचार के आभाव मे मृत्यु भी सम्भव है। उक्त लक्षण की लवण पानी की आवश्यकता व अनुपात विकृति के कारण होती है। मस्तिष्क का एक केन्द्र जो तापमान को सामान्य बनाये रखता है काम करना छोड देता है। लाल रक्त वाहिनियों मे टूट जाती है व कोशिकाओं मे जो पोटेशियम लवण होता है वह रक्त संचार मे आ जाता है जिससे ह््रदय गति व शरीर के अन्य अवयव व अंग प्रभावित होकर लू व ताप घात के रोगी को मृत्यु के मुंह मे धकेल देता है।
लू व तापघात के बचाव के उपाय
लू व तापघात से प्रायः कुपोषित बच्चे, गर्भवती महिलाओ, श्रमिक आदि शीघ्र प्रभावित हो सकते है इन्हे प्रातः 10 बजे से सायं 6 बजे तक गर्मी से बचाने हेतु छायादार ठडे स्थान पर रहने हेतु रखने का प्रयास करें। तेज धूप मे निकलना आवश्यक हो तो ताजा भोजन करके उचित मात्रा मे ठंडे जल का सेवन करके बाहर निकले। थोडे अन्तराल के पश्चात ठंडे पानी, शीतल पेय, छाछ , ताजा फलो का रस का सेवन करते रहे। तेज धुप मे बाहर निकलने पर छाते का उपयोग करे अथवा पतले कपडे से सिर व बदन को ढक कर रखे। नरेगा कार्यो पर अथवा श्रमिको के कार्यस्थल पर छाया का पूर्ण प्रबन्ध रखा जावें ताकि श्रमिक थोडी देर मे छायादार स्थानो पर विश्राम कर सकें।
उपचार
लू व ताप घात से प्रभावित रोगी को तुरन्त छायादार ठंडे स्थानो पर लिटा दें। रोगी की त्वचा को गीले कपडे से स्पन्ज करते रहें तथा रोगी के कपडो को ढीला कर दें। रोगी होश में हो तो उसे ठन्डा पेय पदार्थ देवें। रोगी को तत्काल नजदीक के चिकित्सा सस्थान मे उपचार हेतु लेकर जावें। गंभीर रोगियों को चिकित्सा संस्थानों मे दिये जाने वाला उपचार, चिकित्सा संस्थानो मे एक वार्ड मे दो चार बैड लू तापघात के रोगियों के उपचार हेतु आरक्षित रखे जावे। वार्ड का वातावरण कूलर या पंखे से ठन्डा पेयजल की व्यवस्था रखी जावें। मरीज तथा उसके परिजनो के लिये शुद्व व ठन्डे पेयजल की व्यवस्था रखी जावे। संस्थान मे रोगी के उपचार हेतु आपातकालीन ट्रे मे ओ.आर.एस., ड्रीपसेट, जी.एन.एस, जी.डी.डब्ल्यु, रिगरलेकटेक, लूड एवं आवश्यक दवाये तैयार रखी जावें। चिकित्सक एव नसिंग स्टाफ को इस दौरान ड्यूटी के प्रति सतर्क रखा जावें।
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